Madhu varma

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लेखनी कविता - सुबह हो रही थी - कुंवर नारायण

सुबह हो रही थी / कुंवर नारायण


सुबह हो रही थी
कि एक चमत्कार हुआ
आशा की एक किरण ने
किसी बच्ची की तरह
कमरे में झाँका

कमरा जगमगा उठा

"आओ अन्दर आओ, मुझे उठाओ"
शायद मेरी ख़ामोशी गूँज उठी थी।

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